Karna ka Paksh Hindi Monologue | Audition script |
CHARACTER DESCIPTION
NAME- कर्ण
INFO THAT YOU NEED- was discarded by his own mother post birth, felt hatred of others his whole life, self made, proud, loyal friend
अभी मृत्यु हुई है मेरी, अर्जुन ने अपने बाणों से छलनी कर दिया मेरे शरीर को, जानता मैं भी था कि विजय किस पक्ष की होगी परंतु बात तो मित्रता निभाने की थी। हां, इतिहास कहेगा कि करण ने जानबूझकर अधर्म का साथ दिया परंतु धर्म अधर्म तो सब देखने वाले के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। जब इन सब धर्म के रक्षकों ने सूत पुत्र कह कर मेरा बहिष्कार किया तो किस ने साथ दिया मेरा? मेरे मित्र दुर्योधन ने! मुझे अंगराज बनाया, सम्मान दिया, प्रतिष्ठा दी, अपने बराबर का समझा, कभी नीचे नहीं दिखाया। क्या इसलिए कि वह मुझसे लाभ ले सके? नहीं। उसे मुझसे सांत्वना हुई क्योंकि पहली बार उसे अपनी छवि किसी और में दिखाई दी थी। वही तिरस्कार, घृणा का भाव, मानसिक पीड़ा, बहुत कुछ एक जैसा था हम दोनों के जीवन में। मैं यह भी जानता था कि उस दिन साधु के भेष में वह इंद्र मुझसे मेरा कवच और कुंडल मांगने आया है परंतु बात तो वचन निभाने की थी और जो वचन से फिर जाए वह करण नहीं। इतिहास बहुत कुछ कहेगा मेरे बारे में, कुछ अच्छा, कुछ बुरा, लेकिन इतिहास हमेशा विजई पक्ष का साथ देता है। यदि हम विजई होते तो महाभारत का सबसे बड़ा अधर्मी होता वह कृष्ण क्योंकि उसी ने तो घोषणा की थी महाभारत के युद्ध की। हां, दुर्योधन ने 5 गांव देने से मना किया परंतु क्यों देता वह? क्या धृतराष्ट्र ने जानते बुझते हुए अपने समस्त राज्य को दांव पर नहीं लगाया था। हां, द्रौपदी का अपमान हुआ राज्यसभा में, परंतु स्त्री को संपत्ति समझने वाले उन पांडवों ने ही दुर्योधन के अधीन किया उसे या नहीं? मेरा पक्ष देखोगे तो तुम्हें समझ आएगा कि मैं धर्म के साथ था परंतु धर्म अधर्म तो देखने वाले के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, धर्म अधर्म तो देखने वाले के दृष्टिकोण पर निर्भर करता।

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